बीरबल को बेवकूफ बनाने का मतलब-अकबर बीरबल की कहानी
Apr 10,2021 03:46 AM posted by Admin
बुद्धिमान के साथ-साथ बीरबल बहुत नेकदिल और दानी इंसान भी थे। वह सदैव दान करते और इतना ही नहीं, बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी ज्यादातर ग़रीबों और दीन-दुःखियों में बांट देते थे। इसके बावजूद भी उनके पास धन की कोई कमी न थी। दान देने के साथ-साथ बीरबल इस बात से भी चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति अपनी दीनता दिखाकर उन्हें ठग न लें।ऐसे में एक बार दरबारियों के साथ मिलकर अकबर ने एक योजना बनाई कि देखें कि सच्चे दीन-दुःखियों की पहचान बीरबल को हो पाती है या नहीं। बादशाह की योजना के अनुसार यदि एक सैनिक को बदलवाकर दीनहीन अवस्था में बीरबल से अगर आर्थिक सहायता के रूप में कुछ ले आएगा, तो अकबर की ओर से उसे इनाम मिलेगा।उधर एक दिन जब बीरबल पूजा-पाठ करके मंदिर से आ रहे थे, तो भेष बदला हुआ व्यक्ति बीरबल के सामने आया और बोला-"हजर दीवान! मैं और मेरे आठ छोटे बच्चे हैं, जो आठ दिनों से भखे हैं. भगवान का कहना है कि भूखों को भरपेट खाना खिलाना बहुत पुण्य का कार्य है। मुझे आशा है कि आप मुझे दान करके अवश्य ही पुण्य कमाएंगे।" बीरबल ने उस व्यक्ति को सिर से पांव तक देखा और एक क्षण में ही समझ लिया कि वह ऐसा नहीं है, जैसा वह दिखावा कर रहा है।
उसकी बात सुनकर बीरबल मन-ही-मन मुस्कराए और बिना कुछ बोले ही उस रास्ते पर चल पड़े जहां से होकर नदी पार करनी पडती व्यक्ति भी बीरबल के पीछे-पीछे चलता रहा। बीरबल ने नदी के लिए जूती उतारकर हाथ में ले ली। उस व्यक्ति ने भी अपने फटी-पुरानी जूती हाथ में लेने का प्रयत्न किया।बीरबल नदी पार कर पथरीले रास्ते से नंगे पैर आगे चलने लगे वह मनुष्य दो-चार कदम चलने के बाद ही जूती पहन लेता था। बीर यह बात भी गौर कर चुके थे कि नदी पार करते समय उसका पैर धला के कारण वह व्यक्ति और भी साफ-सुथरा, चिकना, मुलायम गोरी चमडी का दिखने लगा था। इसलिए मुलायम पैरों से वह पथरीले रास्ते पर नहीं चल सकता था। - "दीवानजी! मुझ दीन-हीन की पुकार आपने सुनी नहीं? पीछे आ रहे व्यक्ति ने कहा।तब बीरबल बोले-"जो मुझे बेवकूफ बनाए, मैं उसकी पुकार कैसे सुन सकता हूं?"क्या कहा? क्या आप मेरी सहायता करके बेवकूफ बन सकते हैं? यह कैसे?"वह ऐसे कि शास्त्रों में लिखा है कि बच्चे का जन्म होने से पहले ही भगवान उसके भोजन का प्रबंध करते हुए उसकी मां के स्तनों में दूध दे देता है, उसके लिए भोजन की व्यवस्था भी कर देता है। यह भी कहा जाता है कि भगवान इंसान को भूखा उठाता है पर भूखा सुलाता नहीं है। इन सब बातों के बाद भी तुम अपने-आपको आठ दिन से भूखा कह रहे हो। इन सब स्थितियों को देखते हुए यही समझना चाहिए कि भगवान तमसे रुष्ट हैं और वह तुम्हें और तुम्हारे परिवार को भूखा रखना चाहता है लेकिन मैं उसका सेवक हूं, यदि मैं तुम्हारा पेट भर दूं तो ईश्वर मुझ पर रुष्ट होंगे ही। मैं ईश्वर के विरुद्ध नहीं जा सकता, न बाबा न! मैं तुम्हें भोजन नहीं करा सकता, क्योंकि यह सब कोई पापी ही कर सकता है।"
बीरबल का यह जवाब सुनकर वह अपने रास्ते चला गया। उसने इस बात की बादशाह और दरबारियों को सूचना दी।तब बादशाह अब यह समझ गए कि बीरबल ने उसकी चालाकी पकड़ ली है। बीरबल से पूछा-"बीरबल बताओ तुम्हारे धर्म-कर्म की बड़ी चर्चा है लेकिन तुमने कल एक भूखे को निराश ही लौटा दिया, क्यों?"आलमपनाह ! मैंने किसी भूखे को नहीं, बल्कि एक ढोंगी को लौटा दिया था। और मैं यह बात भी जान गया है कि वह ढोंगी आपके कहने पर मुझे बेवकूफ बनाने आया था।"अकबर ने कहा-"बीरबल! तुमने कैसे जाना कि यह वाकई भूखा न होकर, ढोंगी है "जहांपनाह, यह सच है कि उसने अच्छा भेष बनाया था, मगर उसके पैरों की चप्पल कीमती थी।बीरबल ने आगे कहा-"माना कि चप्पल उसे भीख में मिल सकती थी, पर उसको कोमल, मुलायम पैर तो भीख में नहीं मिले थे, इसलिए कंकर-पत्थर सहन न कर सके।"बीरबल ने आगे बताया-"किस प्रकार उसने उस मनुष्य की परीक्षा लेकर जान लिया कि उसे नंगे पैर चलने की भी आदत नहीं है। वह दरिद्र नहीं, बल्कि वह किसी अच्छे कुल का खाता-कमाता पुरुष है।"
बादशाह बोले-"क्यों न हो, वह मेरा खास सैनिक है।" फिर बहुत प्रसन्न होकर बोले-"सचमुच बीरबल! मा-बदौलत तुमसे बहुत खुश हुए। तुम्हें धोखा देना आसान काम नहीं है।"
बादशाह के साथ साजिश में उपस्थित सभी दरबारियों के चेहरे बुझ गए। पर बीरबल इनाम का हकदार बन गया।