एक शहर में रामदास का एक व्यापारी मित्र मोती चन्द थ में काफी गहरी मित्रता थी। एक दिन मोती चन्द को सपरिवार, किसी दूसरे शहर जाना पड़ा। उसने अपना सारा सामान रामदास कर दिया और बेफिक्र होकर चला गया। यात्रा लम्बी थी, इसलि चन्द को अपने शहर लौटने में तीन वर्ष लग गए। घर आकर उसका कि किवाड़ खुले पड़े हैं तथा उसके घर का सारा सामान गायब है देखकर उसने समझा कि उसके घर का सारा सामान रामदास अपने ले गया होगा।मोती चन्द रामदास के घर गया और उसका हाल पूछा। रामदास उसको कोई खास सम्मान नहीं दिया। फिर मोती चन्द ने उससे अपना मालअसबाब मांगा। इस पर रामदास ने कहा-"तुम मेरे यहां कौन-सा माल-असबाब रख गए थे, जिसे अब मांगने आए हो?
जिसके यहां रखा हो, उससे जाकर मांगो।"रामदास की यह उल्टी बात सुन मोती चन्द सिटपिटाकर बोला-"मैंने अपना सारा सामान तुम्हें सौंपा था, इसलिए तुमसे मांगने आया हूं। मज़ाक छोड़कर मेरा सामान जल्दी दे दो।""तुमने मुझे कुछ नहीं दिया था। चुपचाप चले जाओ, नहीं तो धक्के देकर निकाल दिया जाएगा। मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूं।" रामदास ने उत्तेजित स्वर में कहा। । यह सुनकर मोती चन्द हक्का-बक्का रह गया। उसकी आंखों में आंसू भर आए। थोड़ी देर तक सोच-विचार करने के बाद उसने कहा-"रामदास! तुम्हें जिगरी दोस्त समझकर मैंने अपना माल सौंपा था, जिसका तुम यह फल दे रहे हो? तुम तो बड़े भले आदमी थे, तुम्हें क्या सूझी? जान-बूझकर विश्वासघात का पाप अपने सिर क्यों लेते हो? ईश्वर के यहां तुम्हारा छुटकारा कभी नहीं होगा। अतः उचित यही होगा कि तुम मेरी सारी अमानत मुझे लौटा दो।"
मोती चन्द की बात सुनकर रामदास गुस्से से और भी लाल-पीला हान लगा, वह लड़ने-मरने तक को तैयार हो गया। मोती चन्द ने अधिक देर ठहरना उचित नहीं समझा और वहां से दिया। उसके पास न तो रामदास के हाथ की लिखी रसीद थी और ही कोई गवाह। बिना किसी प्रमाण के अंदालत में मुकद्दमा दायर करने सभी कुछ नहीं मिल सकता था। वह चिंता करता हुआ अपने घर पहुंचा।उसकी बीरबल से बहुत मित्रता थी। इस विषय में उसने बीरबल से सलाह लेने का विचार किया। दूसरे दिन उसने बीरबल के पास पहुंचकर मारा हाल कह सुनाया तथा उससे इस विषय में सहायता मांगी। "तीन दिन के बाद आना, मैं युक्ति बताऊंगा।"
बीरबल ने उसे सांत्वना दी।अब तीन के दिन बाद बीरबल ने रामदास को बुलाया। रामदास बहुत घबराया हुआ था। उसने समझा, शायद मोती चन्द के कहने से बुलाया गया है। वह हिम्मत बांधकर यह सोचते हुए दरबार की ओर चल पड़ा कि मोती चन्द के पास रसीद तो है नहीं, अतः वह कर ही क्या सकता है? इस तरह सोचता हुआ रामदास बीरबल के पास पहुंचा।इधर बीरबल ने उसे आदर सहित बठाया और उसके साथ इस ढंग से बातें करना शुरू की, जिससे उसे यह मालूम न हो सके कि मोती चन्द के विषय में उसे मालूम है।बातचीत करते-करते बीरबल ने कहा-"अरे भाई रामदास! तुम्हारा मेरा कितने दिनों से प्रेम है।
अब ईश्वर की कृपा से उसे प्रकट करने का अवसर आ गया है। छोटे-छोटे अभियोगों का फैसला करने के लिए एक नयान्यायालय खोलने की अकबर बादशाह ने आज्ञा दी है। उस न्यायालय के लिए तुम्हें न्यायाधीश बनाने का विचार है। तुम्हारी इच्छा जानने के लिए इस समय मैंने तुम्हें बुलाया है। यदि यह कार्य तुमसे हो सकता हो तो विचार करके मुझे जवाब दो...।"बीरबल की यह बात सुनकर रामदास के हर्ष का ठिकाना नहीं रहा। उसके मन में आनन्द की लहर उठने लगी। उसने खश होकर कहा-"दीवान साहब! इस काम के लिए आप मुझे योग्य समझ रहे हैं, यह मेरे लिए सम्मान व गौरव की बात है। इसमें सोचना क्या है?""अच्छा, अब मैं मौका देखकर अकबर बादशाह से तुम्हारे बारे में कहूंगा।" बीरबल ने कहा।रामदास वहां से चला आया। रास्ते में उसके मन में अनेक प्रकार के विचार उठते रहे। वह खुशी से आनन्दित होता हुआ घर पहुंचा।
इस बीच बीरबल ने उसके जाने के बाद मोतीचन्द को बुलाकर कहा कि वह रामदास के यहां जाकर एक बार फिर अपनी धन -सम्पत्ति वापस काल रामदास के पास र्थना की। तब रामदास देने को कहे। बीरबल के कहने पर मोतीचन्द प्रात:काल - गया और अपनी धन-सम्पत्ति वापस करने की फिर प्रार्थना की। ने पहले की तरह ही कहा-"तुम्हारा मेरे पास है क्या. जो बार मांगते हो?"अब मोती चन्द बोला-"भाई रामदास! जब तुम किसी प्रकार समझ रहे हो तो मुझे अब हारकर दीवानजी से इसकी शिकायत पड़ेगी।"बीरबल से शिकायत करने की बात सुनते ही रामदास के होश उसने सोचा-"बीरबल मुझको न्यायाधीश के पद पर नियुक्त करने है।
यदि ऐसे समय में यह जाकर शिकायत करेगा तो मेरी बहत हानि अतः इसकी धन-सम्पत्ति दे देनी चाहिए, जिससे बीरबल को कल ही न हो। न्यायधीश का पद पाने पर ऐसी जाने कितनी दौलत मेरे पाय अपने-आप आ जाएगी।" ऐसा सोचकर उसने बात बदलते हुए कहा-"भाई मोती चन्द! मैं तो अब तक तुझसे हंसी कर रहा था। मैं यह देख रहा था कि तुझ में कितनी हिम्मत है। लो, अपनी अमानत ले जाओ। यदि तुम आज न आते तो कलमैं स्वयं तुम्हारे घर आता।" ऐसा कहकर उसने मोती चन्द का सब माल असबाब लौटा दिया।मोती चन्द खुशी-खुशी अपने घर गया।
सायंकाल जब बीरबल दरबार से अपने घर आए तो मोती चन्द ने उनको धन्यवाद दिया।इधर रामदास बीरबल की ओर से बुलावा आने की बाट देखता रहा, पर दस-बारह दिन तक जब कुछ खबर नहीं मिली तो वह स्वयं बीरबल के पास गया और स्वयं घुमा-फिराकर बात छेड़ दी।तब बीरबल ने कहा-"न्यायाधीश का पद ईमानदार मनुष्य को मिलता है, किसी की अमानत में खयानत करने वाले को नहीं। जाओ, अब मर पास कभी मत आना।"इतना सुनकर रामदास अपना-सा मुंह लेकर चला गया। उसको उसका धृष्टता का फल मिल गया था। जब यह खबर बादशाह अकबर का पहुंची तो बीरबल के न्याय से वह बहुत खश हए और उसे इनाम दिया.