वैशाख मास की गणेश चतुर्थी व्रत कथा : वैशाख संकष्टी

वैशाख मास की गणेश चतुर्थी व्रत कथा : वैशाख संकष्टी

May 04,2021 10:16 AM posted by Admin

पुराने जमाने में रंतिदेव नामक एक राजा था। रंतिदेव के राज्य में धर्मकेतू नाम का एक ब्राह्मण रहता था। धर्मकेतू की दो पलियाँ थी। एक का नाम था सुशीला तथा एक का नाम चंचला था। दोनों पत्नियों के विचारों एवं व्यवहार सुशीला धार्मिक थी और व्रत-उपवास किया करती थी। इसके विपरीत चंचला भोग-विलास में मस्त रहती थी। शृंगार पर ही अधिक ध्यान देती रहती थी। किसी व्रत-उपवास से उसका कुछ लेना-देना नहीं था।

कुछ दिनों बाद धर्मकेतु की दोनों पलियों के सन्तान की प्राप्ति हुई। सुशीला को पुत्री हुई और  चंचलता ने एक पुत्र को जन्म दिया। चंचलता सही कहती रहती थी- "सुशीला! तूने इतने व्रत-उपवास करके अपने पर सखा लिया, फिर भी तेरे लड़की हुई। मैंने कोई व्रत-उपवास या पूजा नहीं की, फिर भी पुत्र को जन्म दिया।" 

कुछ दिन तक तो सुशीला सुनती रही। पर जब अति हो गई तो उसे दुःख हुआ। उसने गणेशजी की आराधना की। गणेशजी प्रसन्न हुए, उनकी रूपवान पुत्र भी उसने जन्मा। गणेशजी की कृपा से सुशीला की पुत्री के मुंह से बहुमूल्य मोती-मूंगे निकलने लगे। 

सुशीला का ऐसा सौभाग्य जगा तो चंचलता के मन में जलन होने लगी। उसने सुशीला की बेटी को कुएँ में गिरा दिया। पर सुशीला पर तो गणेशजी की कृपा थी। उसकी बेटी का बाल भी बाँका नहीं हुआ और वह सकुशल कुएँ से निकाल ली गई।

सुशीला सोचने लगी कि आखिर ऐसी घिनोनी हरकत कौन कर सकता है। पता लगने पर चंचलता हाथ जोड़कर माफ़ी मागने लगी कि मै पापिन हूँ मुझे माफ कर दो। भगवान गणेश जी का व्रत करने से दोबारा प्रेम - भाव स्थापित हो गया।

भगवान श्री कृष्ण जी कहते हैं कि हे धर्मराज! " आप भी गणेश जी का व्रत कीजिये। इससे आपके शत्रुओं का नाश होगा तथा अष्टसिद्धियाँ और नवनिधियाँ आपके सामने करबद्ध होकर खड़ी रहेंगी। हे धर्मपरायण! युधिष्ठिर! आप अपने भाईयों, धर्मपत्नी और माता के सहित इस व्रत को कीजिये।