10 Gurus of Sikh : सिखों के 10 गुरु

Nov 23,2018 12:57 PM posted by Admin

10 Gurus of Sikh: गुरु नानक देव सिख धर्म के सबसे पहले गुरु थे। सिख धर्म में केवल 10 गुरु का जिक्र किया जाता है, आइये अब हम लोग सिखों के 10 गुरुओं की जन्मतिथि, गुरु बनने की तीथि, निर्वाण तीथि और आयु के बारे में जानते है- 10 Gurus of Sikh : सिखों के 10 गुरु [su_table]

क्रमांक नाम जन्मतीथि गुरु बनने की तीथि निर्वाण तीथि आयु
1 गुरु नानक देव 15 अप्रैल 1469 20 अगस्त 1507 22 सितम्बर 1539 69
2 गुरु अंगद देव 31 मार्च 1504 7 सितम्बर 1539 29 मार्च 1552 48
3 गुरु अमर दास  5 मई 1479 26 मार्च 1552 1 सितम्बर 1574 95
4 गुरु राम दास 24 सितम्बर 1534 1 सितम्बर 1574 1 सितम्बर 1581 46
5 गुरु अर्जुन देव 15 अप्रैल 1563 1 सितम्बर 1581 30 मई 1606 43
6 गुरु हरगोबिन्द सिंह 19 जून 1595 25 मई 1606 28 फरवरी 1644 48
7 गुरु हर राय 16 जनवरी 1630 3 मार्च 1644 6 अक्टूबर 1661 31
8 गुरु हर किशन सिंह 7 जुलाई 1656 6 अक्टूबर 1661 30 मार्च 1664 7
9 गुरु तेग बहादुर सिंह 1 अप्रैल 1621 20 मार्च 1665 11 नवंबर 1675 54
10 गुरु गोबिंद सिंह 22 दिसम्बर 1666 11 नवंबर 1675 7 अक्टूबर 1708 41
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गुरु नानक देव - Guru Nanak Dev Short Biography In Hindi


गुरु नानक जंयती (Guru Nanak Jayanti) कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूरे देश में बड़े ही उत्साह के साथ मनाई जाती है, गुरु नानक का अवतरण संवत्‌ 1526 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था इस दिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है. कुछ विद्वान गुरु नानक की जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं. नानक जी का जन्म रावी नदी के किनार स्थित तलवंडी नामक गांव खत्रीकुल में हुआ था. गुरु नानक ने सिख धर्म की स्थापना की थी. गुरु नानक सिखों के आदिगुरु हैं. गुरु नानक देव जी अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे. बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व वाले मानने लगे. नानक देव ने समाज में फैली कुरीतियों को खत्म करने के लिए अनेक यात्राएं की थी

गुरु अंगद देव - Guru Angad Dev Short Biography In Hindi


अंगद देव का पूर्व नाम लहना था। भाई लहणा जी के ऊपर सनातन मत का प्रभाव था, जिस के कारण वह देवी दुर्गा को एक स्त्री एंवम मूर्ती रूप में देवी मान कर, उसकी पूजा अर्चना करते थे। वो प्रतिवर्ष भक्तों के एक जत्थे का नेतृत्व कर ज्वालामुखी मंदिर जाया करता था। 1520 में, विवाह माता खीवीं जी से हुआ। उनसे उनके दो पुत्र - दासू जी एवं दातू जी तथा दो पुत्रियाँ - अमरो जी एवं अनोखी जी हुई। मुगल एवं बलूच लुटेरों (जो कि बाबर के साथ आये थे) की वजह से फेरू जी को अपना पैतृक गांव छोड़ना पड़ा। इसके पश्चात उनका परिवार तरन तारन के समीप अमृतसर से लगभग 25 कि॰मी॰ दूर स्थित खडूर साहिब नामक गांव में बस गया, जो कि ब्यास नदी के किनारे स्थित था।

गुरु अमर दास - Guru Amar Das Short Biography In Hindi


गुरू अमर दास जी सिख पंथ के एक महान प्रचारक थे। जिन्होंने गुरू नानक जी महाराज के जीवन दर्शन को व उनके द्वारा स्थापित धार्मिक विचाराधारा को आगे बढाया। तृतीय नानक' गुरू अमर दास जी का जन्म बसर्के गिलां जो कि अमृतसर में स्थित है, में वैसाख सुदी 14वीं , सम्वत 1536 को हुआ था। उनके पिता तेज भान भल्ला जी एवं माता बख्त कौर जी एक सनातनी हिन्दू थे और हर वर्ष गंगा जी के दर्शन के लिए हरिद्वार जाया करते थे। गुरू अमर दास जी का विवाह माता मंसा देवी जी से हुआ था। उनकी चार संतानें थी। जिनमें दो पुत्रिायां- बीबी दानी जी एवं बीबी भानी जी थी।

गुरु राम दास - Guru Ram Das Short Biography In Hindi


गुरू राम दास (जेठा जी) का जन्म चूना मण्डी, लाहौर (अब पाकिस्तान में) में कार्तिक वदी 2, (25वां आसू) सम्वत  (24 सितम्बर 1534) को हुआ था। माता दया कौर जी (अनूप कौर जी) एवं बाबा हरी दास जी सोढी खत्री का यह पुत्र बहुत ही सुंदर एवं आकर्षक था। राम दास जी का परिवार बहुत गरीब था। उन्हें उबले हुए चने बेच कर अपनी रोजी रोटी कमानी पड़ती थी। जब वे मात्र 7 वर्ष के थे, उनके माता पिता की मृत्यु हो गयी। उनकी नानी उन्हें अपने साथ बसर्के गाँव ले आयी।

गुरु अर्जुन देव - Guru Arjun Dev Short Biography In Hindi


अर्जुन देव जी गुरु राम दास के सुपुत्र थे। उनकी माता का नाम बीवी भानी जी था। गोइंदवाल साहिब में उनका जन्म 15अप्रैल 1563को हुआ और विवाह 1579 ईसवी में। सिख संस्कृति को गुरु जी ने घर-घर तक पहुंचाने के लिए अथाह प्रयत्‍‌न किए। गुरु दरबार की सही निर्माण व्यवस्था में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1590ई. में तरनतारनके सरोवर की पक्की व्यवस्था भी उनके प्रयास से हुई।

गुरु हर गोबिन्द सिंह - Guru Har Gobind Singh Short Biography In Hindi


गुरू हरगोबिन्द सिखों के छठें गुरू थे। साहिब की सिक्ख इतिहास में गुरु अर्जुन देव जी के सुपुत्र गुरु हरगोबिन्द साहिब की दल-भंजन योद्धा कहकर प्रशंसा की गई है। गुरु हरगोबिन्द साहिब की शिक्षा दीक्षा महान विद्वान् भाई गुरदास की देख-रेख में हुई। गुरु जी को बराबर बाबा बुड्डाजी का भी आशीर्वाद प्राप्त रहा।

गुरु हर राय - Guru Har Rai Short Biography In Hindi


हर राय या गुरू हर राय सिखों के सातवें गुरु थे। गुरू हरराय जी एक महान आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष एवं एक योद्धा भी थे। उनका जन्म सन् 1630 ई० में कीरतपुर रोपड़ में हुआ था। गुरू हरगोविन्द साहिब जी ने मृत्यू से पहले, अपने पोते हरराय जी को 14 वर्ष की छोटी आयु में 3 मार्च 1644 को 'सप्तम्‌ नानक' के रूप में घोशित किया था। गुरू हरराय साहिब जी, बाबा गुरदित्ता जी एवं माता निहाल कौर जी के पुत्र थे। गुरू हरराय साहिब जी का विवाह माता किशन कौर जी, जो कि अनूप शहर (बुलन्दशहर), उत्तर प्रदेश के श्री दया राम जी की पुत्री थी, हर सूदी 3, सम्वत 1617को हुआ। गुरू हरराय साहिब जी के दो पुत्र थे श्री रामराय जी और श्री हरकिशन साहिब जी थे।

गुरु हर किशन सिंह - Guru Har Kishan Singh Short Biography In Hindi


गुरू हर किशन साहिब जी का जन्म सावन वदी 10 (7वां सावन) बिक्रम सम्वत 1713 (7 जुलाई 1656) को कीरतपुर साहिब में हुआ। वे गुरू हर राय साहिब जी एवं माता किशन कौर के दूसरे पुत्र थे। राम राय जी गुरू हरकिशन साहिब जी के बड़े भाई थे। रामराय जी को उनके गुरू घर विरोधी क्रियाकलापों एवं मुगल सलतनत के पक्ष में खड़े होने की वजह से सिख पंथ से निष्कासित कर दिया गया था।

गुरु तेग बहादुर सिंह - Guru Tegh Bahadur Singh Short Biography In Hindi


गुरू तेग़ बहादुर (1 अप्रैल, 1621 – 24 नवम्बर, 1675) सिखों के नवें गुरु थे जिन्होने प्रथम गुरु नानक द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण करते रहे। उनके द्वारा रचित 115 पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं। उन्होने काश्मीरी पण्डितों तथा अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हे इस्लाम कबूल करने को कहा कि पर गुरु साहब ने कहा सीस कटा सकते है केश नहीं। फिर उसने गुरुजी का सबके सामने उनका सिर कटवा दिया।    

गुरु गोबिंद सिंह - Guru Gobind Singh Short Biography In Hindi


गुरु गोबिन्द सिंह जन्म: 22 दिसम्बर 1666, मृत्यु: 7 अक्टूबर  1708) सिखों के दसवें गुरु थे। उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1685 को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।